द्विबुद्धवाद की अंत्येष्टि
द्विबुद्धवाद की अंत्येष्टि
वेदागमिक हिंदू धर्म में भगवान् बुद्ध का क्या स्थान है ,इसको लेकर आज कल विभिन्न भ्रांतियां व्याप्त है। प्रश्न यह उठता है की पुराणों में वर्णित भगवान विष्णु का बुद्धावतार गौतम बुद्ध ही है या कोई और? पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य मतावलंबियों के अनुसार "ब्राह्मण" बुद्ध ( विष्णु अवतार) गौतम बुद्ध से भिन्न है । उनके तर्क कुछ इस प्रकार है -
१. भागवत पुराण में वर्णित है की बुद्ध माता अंजना के सुत थे ,जबकि गौतम बुद्ध की माता का नाम यह नही था।
२. ब्राह्मण बुद्ध कीकट क्षेत्र (श्रीधरी टीकानुसार गया क्षेत्र ) में अवतीर्ण हुए, जबकि क्षत्रिय गौतम बुद्ध तो नेपाल मे हुए थे।
अत: इस विचार के अनुसार विष्णु अवतार बुद्ध अलग है ऐतिहासिक गौतम बुद्ध से, इसी को मै "द्विबुद्धवाद" की संज्ञा देता हूं। द्विबुद्धवाद की पीछे की मंशा क्या थी? और इसका परिणाम क्या होगा? इन प्रश्नों पर हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।
द्विबुद्धवाद का खण्डन
१. नीलमत पुराण में नील कहते है की कलियुग में भगवान विष्णु जगतगुरु बुद्ध के नाम से अवतरित होंगे("विष्णुर्देवो जगन्नाथ: प्राप्ते ब्रह्मन् कलयुगौ, अष्टविंशतितमे भावी बुद्धो नाम जगतगुरु:") । उनका जन्म वैशाखमास के उस समय होगा जब चंद्रमा पुष्ययुक्त होगा ("पुष्पयुक्त निशानाथे वैशाखेमासि")।अब यह विवरण ऐतिहासक गौतम बुद्ध के जन्म से पूर्णतया मिलता है ।
आगे वैशाखशुक्लपुष्पयोग में बुद्धजन्ममहोत्सव मानने का वर्णन है,जिसमे बुद्ध की प्रतिमा का औषधीय श्रृंगार, स्नानादि करके बौद्ध रीतिरिजाव अनुसार पूजा पाठ का वर्णन मिलता है ,साथ ही शाक्यो ,बौद्ध चीवर ,बौद्ध चैत्यों का वर्णन भी मिलता है जो यह प्रमाणित करता है की विष्णु अवतार कोई और नही अपितु भगवान गौतम बुद्ध ही है।
२. अग्नि पुराण के षोडशाध्याय में भगवान विष्णु का मायामोह रूप भगवान बुद्ध का वर्णन मिलता है। यहां पर बुद्ध को शुद्धोधन का पुत्र कहा गया है (" मायामोहस्वरूपोऽसौ शुद्धोधनसुतोऽभवत् ")।अतः यहां से भी स्पष्ट हो जाता है की बुद्धावतार कोई अन्य नही अपितु गौतम बुद्ध ही है।
३. नरसिंह पुराण में भी बुद्ध को शुद्धोधन का पुत्र कहा गया है।और उनकी क्षत्रिय सूर्यवंशी वंशावली भी बताई गई है ("शुद्धोधनाद्बुद्ध: बुद्धादित्यवंशो निवर्तते")। और यहां वर्णित बुद्ध विष्णु अवतार ही है ("कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायण: प्रभु")।
उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है की पुराण वर्णित बुद्ध कोई और नही अपितु गौतम बुद्ध ही है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यही माना गया है की गौतम बुद्ध को ही हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में समावेशित किया गया। यह भारतीय सभ्यता में दर्शनिक सामंजस्य को दिखाता है, यह एक पक्ष से ही नही होता आ रहा अपितु यह दर्शनिकावशोषण भारत के हर परंपरा में दृष्टिगोचर होता है, बौद्ध शास्त्रों में भी हिंदू देवी देवताओं,दर्शन इत्यादि को बौद्ध दर्शनानुसार में समावेशित किया गया है ,कभी इसपर विस्तार से चर्चा करेंगे।
उपरोक्त जन्मोत्सव वर्णन हिंदुओ और बौद्धों का कश्मीर घाटी में आपसी सामंजस्य दिखाता है। और अन्य प्रमाणों से भी यह स्पष्ट है की हिमालई परंपरा में दोनो धर्मों में मेलजोल कितना अच्छा था। हिमालई बौद्ध ग्रंथो में हिंदू देवी देवताओं को पूजनीय माना गया है,और उनका दर्शनिक दृष्टि से समावेश किया गया है तो बुद्ध और बौद्ध प्रतीकों को भी हिंदू तंत्रों में सम्मिलित कर दिया है उदाहरणस्वरूप
श्री नेत्र तंत्र बुद्ध पर ध्यान करने को कहता है । और यहां भी बुद्ध गौतम बुद्ध ही है ,जो की उनके वर्णन से स्पष्ट है । "प्रलंबश्रुतिचीवर:" से यह बात स्पष्ट हो जाती है।
शारदा तिलक तंत्र (१७.१५८) में भी विष्णु अवतारों में बुद्ध अवतार का वर्णन मिलता है , यहां पर "चीवरचिन्हवेशम्" से उनके स्वरूप की बात की गई है जो की बौद्ध स्वरूप है। बुद्ध को अमोघ नास्तिक शास्त्रों का रचना कार कहा गया है।
मेरु तंत्र में तो बुद्ध की मंत्रोपसाना और यंत्रोपासना का वर्णन है। २६ वे पटल में विष्णु रूप बुद्ध की उपासना की बात हुई है जिससे मनुष्य मुक्ति और भुक्ति दोनो प्राप्त कर सकता है। बुद्ध के शिष्यों,इंद्र लोकपाल आदि का वर्णन,और उनके स्वरूप का वर्णन स्पष्ट करता है की गौतम बुद्ध की ही बात हो रही है। यह बुद्ध की पूजा वैदिक द्विजो के लिए निषिद्ध है, वाममार्गी विप्र, कुंदक,गोलक,वर्णशंकर,कायस्थ, प्रमाद में लिप्त मलेच्छ और जो वैदिक संस्कार हीन है उनके लिए बुद्ध का मंत्र दिया गया है --
" नमो भगवते बुद्धसंसारार्णवतारक,कलिकालादहं भीतश्शरण्यंश शरणंगत: "
|"भगवान बुद्ध को नमस्कार है, जो भवसागर से पार कराने वाले है, आपको संरक्षक जानकर मै कलयुग से भयभीत होकर आपकी शरण में आया हूं"|
आगे यंत्रोपसना मे कामिनी, देवी महामाया(गौतम बुद्ध की माता),यमरी श्री कृष्ण,विनायक,निधिचंद्र और समंतभद्र बुद्ध (ध्यान के बोधिसत्त्व) के नामो का वर्णन है।
माहेश्वर तंत्र में भी भगवान विष्णु के मायामोह रूप बुद्ध का वर्णन है। "विष्णु: सुदुस्तरां मायामास्थाय सुरनोदित:"। साथ ही बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक कहा गया ,और ऐसा वर्णन है की बुद्ध ने असुरों से कहा की बौद्ध मत का अनुसरण करो देवताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए।
जगतगुरु श्री माध्वाचार्य जी के महाभारत तात्पर्य निर्णय और श्री वदीराजस्वामीकृत दशावतार स्तुति भी शुद्धोधन सुत गौतम बुद्ध की ही बात करती है। श्री बन्नाजी गोविंदाचार्य के अनुसार माधवीय परम्परा में गौतम बुद्ध की ही बात हुई है। इसके अतिरिक्त मत्स्य पुराण में शाक्य, सुद्धोधन और राहुल का वर्णन मिलता है ,साथ ही वराह पुराण में बुद्धद्वादशी व्रत का भी उल्लेख है।
द्विबुद्धवाद प्रेरित अंतर्विरोधी तर्को का निराकरण
~भागवत पुराण में वर्णित बुद्ध गौतम बुद्ध से नही मिलते जुलते। इसका समाधान श्रील जीव गोस्वामी जी ने कर दिया है।उनके अनुसार इस श्लोक में वर्णित बुद्धावतार किसी अन्य कलियुग का है ,ये अवतार इस कलियुग का नही है।एक मनु के जीवन काल में ७२ से अधिक कलियुग हैं, और उनमें से एक में यहाँ वर्णित विशेष प्रकार के बुद्ध दिखाई देंगे। ये बौद्धों के एक से अधिक, अलग अलग युगों में होने वाले बुद्धो के सिद्धांत के अनुसार भी सटीक बैठता है। अलग अलग युगों में अलग अलग बुद्धवतार की परिकल्पना योग वाशिष्ठ के निर्वाण प्रकरण में काग भूषुण्डी के दृष्टांत में भी वर्णित है।
~ एक अन्य तर्क से भी इस श्लोक और गौतम बुद्ध में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। गौतम बुद्ध की माता महादेवी माया थी,विभिन्न गौडीय टीकाकारों के अनुसार अञ्जना शब्द माया के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है । मेरे मतानुसार चुंकि महादेवी माया के पिता का नाम "अञ्जन" था , अत: संभवत: महादेवी माया के लिए "अञ्जना" प्रयुक्त हो सकता है यहां। और कीकट संभवत: प्राचीन मगध रहा होगा जिसमे नेपाल लुंबनी भी होगा। और श्रीधरी टीका में "कीकटेषु मध्ये गया" ऐसा लिखा हुआ है ,तो गया क्षेत्र कीकट का मध्य भाग हो सकता है,तो कीकट क्षेत्र की सीमा गया क्षेत्र में सीमित नहीं थी। और अगर यह मान भी लिया जाय की कीकट गया क्षेत्र है तो भी गौतम बुद्ध की ज्ञान-ध्यान-बुद्धत्व की धरती तो गया क्षेत्र ही थी। सयाण के अनुसार कीकट का अर्थ नाास्तिक है, अत: इस अर्थ के अनुसार , "कीकटेषु भविष्यति" का अर्थ होगा की भगवान बुद्ध नास्तिको के बीच में अवतरित होंगे।
~बुद्ध अगर भगवान थे तो वैदिक धर्म का विरोध क्यों किया? बुद्ध ने कभी वैदिक धर्म का विरोध नही किया, बुद्ध ने सदा उसका विरोध किया जो वेदों के नाम पर अधार्मिक क्रियाक्रलापो में लिप्त थे,उन्होंने ऐसे दैत्यों लोगो को अप्रत्यक्ष/अपरोक्ष रूप से वैदिक धर्म से दूर ले कर गए, यह बात विष्णुपुराण (३.१८),भागवत पुराण ११.४.२२ और गरुड़ पुराण ३.१५.२६ से स्पष्ट है। और उनके द्वारा नया मत चलाने का भी वर्णन है अत: ये आत्मघाती तर्क किसी भी कसौटी पर खरा नहीं उतरता।क्योंकि यही बुद्धावतार का प्रयोजन था।और वो भगवान है तो कुछ भी कर सकते हैं।
द्विबुद्धवाद का मूल और इसके पीछे की मंशा
ऐसा पुराणोक्त और बौद्धग्रंथोक्त है की गौतम बुद्ध ने कुछ विशेष प्रकार के लोगो° का विरोध किया। ऐतिहासिक और हिन्दू धर्म ग्रंथो के गहनता पूर्वक अध्ययन के बाद ये स्पष्ट हो जाता है की प्राचीन काल से ही हिंदू पौराणिक समाज दो विचारो में विभक्त रहा है बौद्ध धर्म के प्रति।एक समूह बुद्ध धर्म की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता था और बुद्ध में दिव्यता देखता था साथ ही दर्शनिक खण्डन भी करता था,इसी समूह ने बुद्ध को विष्णु अवतार की संज्ञा दी । इसके विपरीत एक समूह° बुद्ध के प्रति अनुकूल नहीं रहा यह बात कल्कि पुराण में लिखित बौद्धों के प्रति हिंसा ,और भविष्य पुराण में शाक्य सिंह गौतम बुद्ध को दैत्य बताते हुए श्लोक इंगित करते है। यही समूह° वर्तमान समय में द्विबुद्धवाद के जनक है। ऐसा मेरा मत है।इसके पीछे की मंशा द्वेष और ईर्ष्या है।
द्विबुद्धवाद का परिणाम और भविष्य
द्विबुद्धवाद का सिद्धांत अंतरिक रूप से बुद्ध के प्रति ईर्ष्या और द्वेष के प्रस्फुटन को सैद्धांतिक धरातल प्रदान करता है। इसकी आड़ में धार्मिक एकता को चोट पहुंचाना सरल है। इसका परिणाम ये होगा कि बुद्ध के विशेष प्रकार के लोगो के प्रति प्रतिकूल विचारो को उद्धृत करते हुए ये समूह अपनी अंतरिक व्यथा का प्रतिशोध लेगा। और ये शुरू भी हो गया है। लोगो पर मनोवैज्ञानिक असर डालते हुए ये गुट अपनी विचारधारा सफलता पूर्वक संप्रेषित कर सकता है। भविष्य में ये विचारधारा नकली अप्रमाणिक नवबौद्धों को ईंधन देंगी और भारत विरोधी गतिविधियों को प्रबल होने का सुअवसर मिलेगा।
धन्यवाद।
🙏🙏👌
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