त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्
।। अथ गोरक्षरक्षास्तोत्रम् ।। कर्मण्य करुणाकार, कर्णकुण्डलशोभित। कैलाशशिखरावास, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।१।। खेचर खेचरीनाथ, खेचरीज्ञानपारग। खगासन खमाधार, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।२।। गोपते हे गुणातीत, गोतीत गुरो गुणिन्। गुणगण्य गुणाधीश, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।३।। घोररूप घूर्णात्मन्, घटितपापमोचन। घोराघोरघनाघघ्न, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।४।। चारुचन्द्रकलायुक्त, चन्द्रार्धभालमण्डित। चैतन्य चिन्मयानन्द, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।५।। छायामायामलोच्छेदिन्, छद्मविचारछेदक। छेदितकर्णिकाकर्ण, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।६।। जितजन्मजराजाल, जालन्धरसुपूजित। जितेन्द्रिय जटाधारिन्, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।७।। झल्लरीमेखलाधर्तः, झङ्कारनादकारक । झञ्झानिलहिमासीन, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।८।। टङ्गभङ्गितटङ्कार, टीकिताम्नायनायक। टङ्किताहन्तनूकर्तः, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम् ।।९।। ठवर्णरूप ठन्नाथ, ठकारशून्यरूपक। ठन्नादविलसत्मूर्धन्, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम्।।१०।। ढाकाढक्केश्वरीनाथ, ढक्काढोलादिवादक। ढक्काकाशशब्दातीत, त्र्यक्ष गोरक्ष रक्ष माम् ।।११।। त्यागमूर्ते तपोनिष्ठ, तत्वज्ञ तमतारक । तन्त्र